योगेश
पंजाब सरकार ने आन्दोलन कर रहे किसानों को खनोरी और शंभू बॉर्डर से हटा दिया है। जागरूक किसान कह रहे हैं कि पंजाब सरकार ने केंद्र सरकार के मन का काम करके किसानों के साथ अन्याय किया है। खनोरी बॉर्डर पर पिछले 13 महीने से आन्दोलन पर बैठे किसानों के साथ यह बर्ताव उचित नहीं है। पंजाब पुलिस ने 19 मार्च को आमरण अनशन पर बैठे भारतीय किसान यूनियन (एकता सिद्धूपुर – ग़ैर राजनीतिक) के किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के साथ-साथ 100 से ज़्यादा किसानों को गिरफ़्तार कर लिया गया। किसानों की गिरफ़्तारी ने पूरे देश के किसानों में आक्रोश तो भरा है; लेकिन आगे बढ़कर आन्दोलन के लिए अब कोई तैयार नहीं दिखता। सुप्रीम कोर्ट ने किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का इलाज कराने के पंजाब सरकार को आदेश दिये थे। लेकिन पंजाब सरकार ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया, जिससे पूरे देश में आक्रोश है। जो पार्टियाँ किसानों पर अत्याचार को लेकर केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ कुछ नहीं बोल रही थीं, अब वो आप सरकार के ख़िलाफ़ बोल रही हैं। किसानों में भी पंजाब सरकार के ख़िलाफ़ रोष है।
बता दें कि 19 मार्च को केंद्र सरकार और किसानों के बीच बातचीत होनी तय थी। लेकिन केंद्र सरकार ने किसानों को साथ धोखा करते हुए बातचीत की जगह उन्हें गिरफ़्तार करवा दिया। पंजाब सरकार ने 19 मार्च को किसानों की गिरफ़्तारी करके जिस तरह 20-21 तारीख़ तक आन्दोलन पर बैठे किसानों के टैंटों को बुलडोज़र से तोड़कर हटाया, उसकी चर्चा अब किसानों में है। चर्चा यह भी है कि आम आदमी पार्टी की जो सरकार किसानों का समर्थन कर रही थी उसने ऐसा किसके दबाव में किया? पंजाब में सरकार की इस कार्रवाई का विरोध हो रहा है। हरियाणा-पंजाब का खनोरी बॉर्डर खोलने से पहले शंभू बॉर्डर खुलवा दिया गया था। पंजाब पुलिस की कार्रवाई से पहले हरियाणा पुलिस ने 20 मार्च को बैरिकेडिंग हटा ली थी। 405 दिन बाद शंभू टोल प्लाजा पर फिर से टोल वसूला जाने लगा है।

405 दिन के आन्दोलन में 42 किसान शहीद हुए और 115 किसान घायल हुए। दो पुलिसकर्मियों की भी इस दौरान मौत हुई। किसानों की गिरफ़्तारी को लेकर भारतीय किसान यूनियन (दोआबा) के अध्यक्ष गुरमुख सिंह ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी है। याचिका में कहा गया है कि किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को उनका स्वास्थ अच्छा न होने के बाद भी बिना कोई नोटिस दिये और बिना कारण बताये गिरफ़्तार कर लिया गया। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए पंजाब सरकार को नोटिस जारी करके इस मामले की स्टेटस रिपोर्ट माँगी थी, जिसका जवाब पंजाब सरकार ने दायर कर दिया है।
किसानों के टैंटों पर बुलडोज़र चलाने की पंजाब सरकार की कार्रवाई को भारतीय किसान यूनियन (ग़ैर राजनीतिक – टिकैत) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने ग़लत ठहराते हुए कहा है कि भारत सरकार पूँजीपतियों के दबाव में काम कर रही है। किसान किसी राजनीतिक दल के साथ नहीं हैं। राकेश टिकैत ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से आग्रह किया कि वह किसानों से बातचीत करके उनकी माँगों पर ध्यान दें। किसानों का आन्दोलन भारत सरकार की किसानों के लिए बनायी नीतियों के ख़िलाफ़ है। न्यूनतम समर्थन मूल्य और दूसरी किसानों की माँगों को मानने की जगह जिस तरीक़े से 20-21 मार्च की दरमियानी रात किसानों के टैंटों पर बुलडोज़र चलाया गया, वो ग़लत है। अब किसान पंजाब के 17 ज़िलों में धरना-प्रदर्शन करेंगे। इस तरह किसान आन्दोलन को ख़त्म करने पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हम सच्चाई से अनजान नहीं हैं। कुछ लोग किसानों की शिकायतों का निपटारा ही नहीं करना चाहते हैं।
बता दें कि किसानों की माँगें जायज़ हैं और केंद्र सरकार ने किसानों को आश्वासन के बाद भी किसानों की माँगों को पूरा नहीं किया है। 2020 में कोरोना-काल में हुई तालाबंदी के दौरान तीन काले कृषि क़ानून लाकर केंद्र सरकार ने किसानों को आन्दोलन करने को विवश किया था। आन्दोलन के दौरान किसानों पर ख़ूब अत्याचार किये गये और उन पर पुलिस के अलावा अराजक तत्त्वों से भी हमले करवाये गये; लेकिन अराजक तत्त्वों पर कार्रवाई करने और पुलिस को रोकने की जगह केंद्र सरकार ने किसानों के ख़िलाफ़ ही कार्रवाई की। सैकड़ों किसानों को जेल भेजा, उनके रास्ते रोके। किसानों की हत्या करने वालों को बाइज़्ज़त बरी करवाया और अगर कोई जेल गया भी, तो उसे जमानत मिल गयी। लेकिन किसानों को अभी तक राहत नहीं मिली है। अब तक लगभग 800 किसान शहीद हो चुके हैं। जब-जब किसानों ने दिल्ली कूट करना चाहा, तब-तब उन पर हमले किये गये। किसानों ने इसका प्रतिकार तो किया; लेकिन पुलिस पर हमला नहीं किया। निहत्थे किसानों पर गोलीबारी करायी गयी, डंडे चलवाये गये और ट्रैक्टरों समेत उनके महँगे-महँगे वाहन तोड़े गये। इसके बाद भी किसान चुपचाप आन्दोलन कर रहे थे और केंद्र सरकार से बातचीत करके समझौते के लिए तैयार थे। किसानों ने हर बार केंद्र सरकार को बातचीत का मौक़ा दिया। केंद्र सरकार ने किसानों की कोई माँग नहीं मानी और आन्दोलन को ख़त्म करने के लिए किसानों के प्रति दुश्मनों जैसा बर्ताव किया।
शंभू और खनौरी बॉर्डर पर पुलिस की कार्रवाई से नाराज़ किसानों और मज़दूरों ने 21 मार्च से ही सड़कों पर उतरकर सरकार के ख़िलाफ़ विरोध शुरू कर दिया था। हरियाणा और पंजाब के किसानों के अलावा राजस्थान और उत्तर प्रदेश के किसानों ने केंद्र सरकार, हरियाणा सरकार और पंजाब सरकार के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी करके विरोध जताया है। शहीद भगत सिंह यूनियन और संयुक्त किसान मज़दूर इंकलाब यूनियन के बैनर तले किसानों ने पंजाब सरकार के पुतले फूँककर रोष जताया है। इस कार्रवाई से भाजपा और उसकी सरकारों पर फूटने वाला किसानों का ग़ुस्सा आप और उसकी पंजाब सरकार पर फूट पड़ा है। पंजाब में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने भी विधानसभा में बजट सत्र के पहले ही दिन ख़ूब हंगामा किया और जय जवान-जय किसान के नारे लगाए। विधानसभा में पंजाब सरकार के साथ पंजाब के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया का विरोध उनके अभिभाषण के दौरान हुआ। खनोरी बॉर्डर पर से बिना नोटिस के ग़लत तरीक़े से किसानों को हटाये जाने से बॉर्डर तो ख़ाली हो गया, किसान अगर दोबारा सड़कों पर उतर आये, तो पंजाब सरकार की मुश्किलें बढ़ जाएँगी।
किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की गिरफ़्तारी को लेकर किसानों में तो विकट नाराज़गी है ही, आम लोगों में भी नाराज़गी है। किसान और मज़दूर सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के किसानों में इस बात की चर्चा है कि पंजाब सरकार केंद्र सरकार से मिलकर काम कर रही है। किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को उनका स्वास्थ्य ख़राब होने का हवाला देकर गिरफ़्तार करके जालंधर स्थित पंजाब आयुर्विज्ञान संस्थान ले जाया गया था। बाद में उन्हें जालंधर के पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस में भेज दिया गया। उनसे किसी को मिलने नहीं दिया जा रहा है।
किसान आन्दोलन को इस तरह ख़त्म करने को लेकर पंजाब सरकार और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान दोनों के ख़िलाफ़ पंजाब और हरियाणा में प्रदर्शन हो रहे हैं। हरियाणा में ख़ास पंचायतों में इसका विरोध हो रहा है। सभी कहने लगे हैं कि पंजाब सरकार और आप पार्टी अपने कौल से मुकर गयी है। उसने किसानों का साथ देने का वादा किया था; लेकिन उसने भाजपा की किसान विरोधी रणनीति पर चलते हुए केंद्र सरकार के मंसूबों को अंजाम दिया है। सवाल उठ रहे हैं कि पंजाब सरकार ने किसानों के ख़िलाफ़ इतना बड़ा क़दम क्यों उठाया? क्या पंजाब सरकार पर ऐसा करने के लिए केंद्र सरकार ने कोई दबाव बनाया? केंद्र सरकार ने किसानों से बातचीत करके किसानों की समस्याओं का हल निकालने का जो वादा किया था, वो उसने पूरा नहीं किया। पंजाब सरकार ने किसानों को बीच में धोखा दे दिया। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की तौहीन की है, तो पंजाब सरकार ने विरोध-प्रदर्शन के संवैधानिक अधिकार पर हमला किया है। सवाल यह है कि आख़िर सरकारें किसानों की समस्याओं और उनके दर्द को क्यों नहीं समझना चाहतीं?
बता दें कि किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य के अंतर्गत आने वाली फ़सलों पर स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिश के आधार पर सी2 प्लस 50 प्रतिशत न्यूनतम समर्थन मूल्य की माँग कर रहे हैं, जो केंद्र सरकार नहीं दे रही है। सरकार जिस हिसाब से ए2, ए2 प्लस एफएल, सी2 फार्मूला लगाकर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दे रही है, उससे किसानों को घाटा हो रहा है। किसान नेताओं का कहना है कि किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिश के हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ-साथ अन्य 12 शर्तें माँग के तौर पर केंद्र सरकार के सामने रख रहे हैं। इन माँगों में आन्दोलन के दौरान किसानों के ख़िलाफ़ दर्ज किये मुक़दमों की वापसी, गिरफ़्तार किसानों की रिहाई, शहीद किसानों को मुआवज़ा, किसानों की ख़राब होने वाली फ़सलों पर पूरी बीमा राशि, किसानों की हत्या करने वालों को सज़ा, किसानों को सब्सिडी पर बिजली, मंडियों में किसानों की फ़सलों की बिना किसी परेशानी के ख़रीद, किसान परिवारों का बीमा और अन्य कुछ माँगें हैं। केंद्र सरकार स्वामीनाथन आयोग के हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य, उनकी क़ानूनी गारंटी और दूसरी कई माँगों को नहीं मान रही है। सरकार किसानों की इस लाचारी का फ़ायदा उठा रही है कि पूरे देश के किसान एकजुट होकर आन्दोलन नहीं कर रहे हैं। पूरे देश के किसान अगर दोबारा एकजुट होकर 2020-21 की तरह या उससे बड़ा आन्दोलन करें, तो केंद्र सरकार को घुटने टेकने ही होंगे।