नाम भर का महिला सशक्तिकरण


प्रधानमंत्री मोदी ने 08 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर गुजरात के नवसारी ज़िले में एक कार्यक्रम में कहा कि भारत दुनिया की तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है, आधे स्टार्टअप में महिला निदेशक हैं। सबसे बड़ी संख्या में महिला पायलट भारत में हैं। अंतरिक्ष मिशन का नेतृत्व महिला वैज्ञानिकों की टीम कर रही है। माननीय प्रधानमंत्री ने हमारे देश में महिला सशक्तिकरण की ऐसी तस्वीर को दुनिया के सामने उकेरकर ख़ुद को आधी दुनिया का सबसे बड़ा हितेशी होने का संदेश देने की कोशिश की है। लेकिन इससे ठीक पाँच दिन पहले 03 मार्च को भाजपा शासित छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले के परसबाड़ा गाँव में छ: नवनिर्वाचित महिला पंचायत सदस्यों के पतियों ने उनके स्थान पर शपथ ली।

हैरत इस बात पर भी है कि परसबाड़ा गाँव पंडरिया निर्वाचन क्षेत्र में आता है और इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भाजपा की एक महिला विधायक करती हैं। इस घटना का वीडियो सामने आने पर प्रशासन ने ग्राम पंचायत सचिव को निलंबित कर दिया है; पर एक अधिकारी ने इस बात का भी ख़ुलासा किया कि ये नवनिर्वाचित पंच महिलाएँ इसलिए शपथ नहीं ले सकीं, क्योंकि वे पढ़ नहीं सकतीं। यह घटना महिला सशक्तिकरण की ज़मीनी हक़ीक़त को सामने रखती है और अक्सर ऐसी घटनाएँ प्रधानमंत्री के भाषणों से नदारद रहती हैं।

दरअसल भारत दुनिया की पाँचवीं अर्थ-व्यवस्था है और देश की 145 करोड़ आबादी में महिलाओं की संख्या क़रीब 49 फ़ीसदी है। दुनिया की सबसे अधिक महिला आबादी इसी देश में है। महिला मतदान में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। लेकिन यह भी कड़वी हक़ीक़त है कि इसी देश की पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर उनके पति, पुरुष रिश्तेदार कार्यभार सँभालते हैं। सरपंच पति, पंच पति और प्रधान पति की परंपरा आज भी अपनी जड़ें जमाये हुए है। यह मुददा बहुत गंभीर है।

दरअसल भारत मूलत: ग्राम परिवेश वाला देश रहा है; बेशक बीते कई दशकों से रोज़गार अधिकतर शहर केंद्रित होने के कारण गाँववासी भी शहरों की ओर पालयन करते रहते हैं; लेकिन गाँवों का अपना महत्त्व बरक़रार है। स्थानीय स्तर पर महिलाओं को सशक्त बनाने और गाँवों के विकास में उनकी भागीदारी बढ़ाने के मक़सद से 73वें संविधान संशोधन के ज़रिये सन् 1992 में तीन स्तर (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, ज़िला परिषद्) की पंचायत प्रणाली की स्थापना की गयी थी, जिसमें महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की गयीं। बाद में 21 राज्यों और दो केंद्र शासित राज्यों ने इस आरक्षण को 33 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया। यह भी एक तथ्यपरक सच्चाई है कि महिला सरपंचों व पंचों के सामने पुरुषों की तुलना में अधिक चुनौतियाँ आज भी बरक़रार हैं; पर उसके समानांतर महिलाओं के आगे आने से असंख्य गाँवों में स्वच्छता, सड़क, पानी, स्वास्थ्य व शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं को तरजीह मिलने लगी व उनमें सुधार भी हुआ। महिला आरक्षण का यह फ़ायदा दस्तावेज़ों में तो दर्ज हुआ। लेकिन सरपंच पति, पंच पति सरीखा मुद्दा भी एक गंभीर चुनौती बन गया है।

इन पदों पर निर्वाचित महिलाओं के पति जब उनकी जगह काम करते हैं, तो सारी शक्तियों का इस्तेमाल वे करने लगते हैं। ऐसे में निर्वाचित महिला प्रतिनिधि बस काग़ज़ी प्रतिनिधि बनकर रह जाती हैं। यह 21वीं सदी के दो दशक बीत जाने के बाद भी देश में पितृप्रधान संरचना की मज़बूत पकड़ को दर्शाता है और 73वें सविंधान संशोधन की मंशा पर भी आघात है। सरकार भी इस तथ्य की तस्दीक़ करती है। हाल ही में पंचायती राज मंत्रालय द्वारा गठित पैनल द्वारा ‘पंचायती राज प्रणालियों और संस्थाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व और भूमिकाओं को बदलना : प्रॉक्सी भागीदारों के प्रयासों को ख़त्म करना’ विषय पर जारी रिपोर्ट में इस व्यवस्था को ख़त्म करने की सिफ़ारिश के साथ-साथ इसमें सुधार के कई उपाय भी सुझाये गये हैं।

इस रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 2.63 लाख पंचायतें हैं। इनमें 32.29 लाख निर्वाचित प्रतिनिधियों में 46.6 प्रतिशत यानी 15.03 लाख महिलाएँ हैं। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि राजस्थान, हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में ऐसे मामलों की संख्या अधिक है। बिहार में एनडीए की सरकार है, तो हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकारे हैं। समिति ने महिलाओं के हाथों में असल में नेतृत्व की कमान सौंपने के लिए कई सुझाव दिये हैं। ऐसे मामलों से निपटने के लिए महिला लोकपाल की नियुक्ति के सुझाव के अलावा ग्राम सभाओं के शपथ ग्रहण को सार्वजनिक समारोह को आयोजित करने की बात कही है। समिति ने महिलाओं को बेहतर प्रशिक्षण देने और उनके कौशल को बढ़ावा देने के लिए वर्चुएल रियलिटी (वीआर) और एआई के ज़रिये उन्हें प्रशिक्षण देने का भी सुझाव दिया है। कई सुझावों व सिफ़ारिशों से नत्थी यह रिपोर्ट पंचायती व्यवस्था में निर्वाचित महिलाओं को असल में कितना सशक्त करेगी और राज्य सरकारें व केंद्र सरकार क्या ठोस क़दम उठाती हैं? यह आने वाला वक़्त बताएगा।

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