जबलपुर दुर्घटना: मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में एक दर्दनाक हादसे ने पूरे क्षेत्र को झकझोर दिया है। गुरुवार, 10 अप्रैल 2025 को दोपहर करीब 4 बजे चरगवां थाना क्षेत्र के सोमती नदी के पुल पर एक तेज रफ्तार स्कॉर्पियो अनियंत्रित होकर रेलिंग तोड़ते हुए नदी में जा गिरी। इस हादसे में पटेल परिवार के चार लोगों की मौत हो गई और दो गंभीर रूप से घायल हो गए। वाहन में एक बकरा और मुर्गा भी थे, जिन्हें धार्मिक बली के बाद लौटते समय साथ लाया जा रहा था। बकरा इस हादसे में बच गया, लेकिन एक कान कट गया, जबकि मुर्गे की मौके पर ही मौत हो गई। यह हादसा धार्मिक आस्था और सड़क सुरक्षा के टकराव को उजागर करता है।
दर्शन के बाद लौटते वक्त हुआ हादसा
स्कॉर्पियो (MP 20 BA 6954) में सवार छह लोग नरसिंहपुर के प्रसिद्ध दादा दरबार मंदिर से दर्शन कर जबलपुर लौट रहे थे। सभी एक ही पटेल समुदाय से थे और धार्मिक अनुष्ठान के तहत बकरी और मुर्गा लेकर गए थे। लौटते समय दोपहर करीब 4 बजे, जब वाहन सोमती नदी के पुल से गुजर रहा था, तभी तेज गति के कारण चालक नियंत्रण खो बैठा। कार रेलिंग तोड़ती हुई नीचे जा गिरी। हालांकि नदी का तल सूखा था, लेकिन ऊंचाई से गिरने के कारण दुर्घटना भीषण साबित हुई।
चार की मौत, दो घायल
हादसे में किशन पटेल (35), महेंद्र पटेल (35), सागर पटेल (17) और राजेंद्र पटेल (36) की मौके पर ही मौत हो गई। जबकि जितेंद्र पटेल और मनोज पटेल गंभीर रूप से घायल हो गए। दोनों को जबलपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया है। पुलिस के अनुसार, घायल अभी बयान देने की स्थिति में नहीं हैं।
बकरा बचा, छवि पर उठे सवाल
वाहन में एक बकरा और एक मुर्गा भी था। जहां बकरा किसी तरह जीवित बच गया, उसका एक कान कट गया, वहीं मुर्गे की मौत हो गई। इस घटनाक्रम को कई चैनलों और सोशल मीडिया पर सनसनीखेज रूप में पेश किया गया। खासकर एक छवि और शीर्षक—”बली देने जा रहे लोगों की कार नदी में गिरी, चार डूबकर मरे, बकरा बचा”—ने काफी ध्यान खींचा। हालांकि हकीकत यह है कि घटना के समय लोग बली देकर लौट रहे थे, और मौत डूबने से नहीं बल्कि कार के गिरने से हुई।
यह हादसा एक बार फिर तेज रफ्तार, सड़क की स्थिति और सावधानी की कमी को लेकर चिंता बढ़ाता है। साथ ही, धार्मिक बली जैसी प्रथाओं को लेकर भी बहस तेज हो गई है। कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स में यह सवाल उठाया गया कि आखिर किसी बेजुबान की बलि देकर कौन सा पुण्य कमाया जा रहा है। इस तरह की घटनाएं हमें धार्मिक परंपराओं के नाम पर हो रहे जोखिमों और जागरूकता की कमी पर सोचने को मजबूर करती हैं।