कानपुर। उत्तर प्रदेश की सीसमऊ विधानसभा सीट के लिए 23 नवंबर की सुबह से मतगणना का कार्य शुरू हुआ और दोपहर आते-आते ही सीसामऊ सीट पर फिर से साइकिल दौड़ी। पूर्व विधायक इरफान सोलंकी के किले पर उनकी पत्नी नसीम सोलंकी ने दबदबा बनाए रखा और बीजेपी प्रत्याशी सुरेश अवस्थी को 8629 वोटों से हरा दिया। तीसरे नंबर पर बीएसपी के उम्मीदवार वीरेंद्र शुक्ला रहे।
सपा ने नसीम सोलंकी को दिया टिकट
इरफान सोलंकी को आगजनी के मामले में सजा होने के बाद यूपी की सीसामऊ सीट के लिए उपचुनाव का ऐलान हुआ। समाजवादी पार्टी ने इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी को प्रत्याशी बनाया। जबकि बीजेपी ने सुरेश अवस्थी पर दांव लगाया। बीएसपी ने ब्राम्हण चेहरे वीरेंद्र शुक्ला को टिकट दिया। इस सीट पर 49.06 फीसदी मतदान हुआ। शनिवार सुबह आठ बजे से 14 मेजों पर मतगणना का कार्य शुरू हुआ।
8629 वोटों से जीतीं नसीम सोलंकी
मतगणना के 20 राउंड पूरे होने पर सपा प्रत्याशी नसीम सोलंकी को 69666 वोट मिले हैं, जबकि बीजेपी प्रत्याशी सुरेश अवस्थी को 61037 वोट मिले हैं। बसपा प्रत्याशी बीरेंद्र शुक्ला ने 1409 वोट हासिल किए हैं। ऐसे में सपा कैंडीडेट नसीम सोलंकी ने 8629 वोटों से बीजेपी प्रत्याशी को हराकर इरफान सोलंकी की सीट को बरकरार रखा। जीत के बाद सपा में जश्न का माहौल, कार्यकर्ताओं ने आतिशबाजी के जमकर की नारे बाजी। बता दें, 2022 के चुनाव में इरफान सोलंकी को 76 वोट मिले थे।
लगातार बनाए रखी बढ़त
सीसामऊ विधानसभा की मतगणना के 18 राउंड पूरे होने पर सपा की नसीम सोलंकी 13742 वोटों से आगे थीं। सपा प्रत्याशी नसीम सोलंकी को 67131 वोट मिले हैं, जबकि बीजेपी प्रत्याशी सुरेश अवस्थी को 53389 वोट मिले हैं। 17 राउंड की मतगणना के दौरान सपा 14536 वोटों से आगे थी। 15 राउंड में भी सपा 22288 वोटों लाकर बढ़त बनाए रखी। पहले के तीन राउंड में सपा पीछे थे। चौथे राउंड की मतगणना जैसे ही चालू हुई, वैसे सपा ने बढ़त बना ली। और बढ़त आखिर में जीत में तब्दील हो गई।
सीसमऊ में सोलंकी का कब्जा बरकरार
सीसामऊ सीट से 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा कैंडीडेट इरफान सोलंकी विधायक चुने गए थे। पिछले दोनों एक महिला के घर को जलाने के मामले में उन्हें 7 साल की सजा सुनाई गई। इसके बाद इरफान सोलंकी की विधायकी जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत समाप्त हो गई। जिसके चलते सीसामऊ सीट के लिए उपचुनाव हुआ। सपा के गढ़ पर कब्जे को लेकर बीजेपी ने पूरी ताकत झोकी। सीएम से लेकर दोनों डिप्टी सीएम व प्रदेश अध्यक्ष बीजेपी प्रत्याशी के पक्ष में जनसभाएं की। सपा की तरफ से डिम्पल यादव ने रोड शो किया। इंडिया गठबंधन के नेता भी कानपुर पहुंचे और नसीम सोलंकी के समर्थन में जनसभाएं की। सीसामऊ सीट पर 23 साल से इरफान सोलंकी के परिवार का कब्जा है।
2012 में अस्तित्व में आई थी सीसामऊ सीट
वर्ष 2012 में नए परिसीमन के तहत सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र बना। इसके बाद से यह सीट सपा के पास है। इरफान सोलंकी का इस सीट पर खासा दबदबा रहा है। 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा प्रत्याशी रहे इरफान सोलंकी को 79,163 वोट मिले थे। जबकि बीजेपी उम्मीदवार सलिल बिश्नोई 66,897 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे थ। अगर 2017 के चुनाव की बात करें तो इरफान सोलंकी को तब 73,030 वोट मिले थे। बीजेपी के सुरेश अवस्थी 67,204 पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे। 2012 के विधानसभा चुनाव में हाजी इरफान सोलंकी को 56,496 वोट मिले। जबकि बीजेपी के हनुमान स्वरूप मिश्रा 36,833 मिले। कांग्रेस के संजीव दरियाबदी 22,024 पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे।
सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटर्स
सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक मुस्लिम मतदाता हैं। वहीं, दूसरे नंबर पर ब्राह्मण वोटर आते हैं। सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र में एक अनुमान के मुताबिक, मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 1 40 000 है। इसके बाद ब्राह्मण वोटर करीब 80 हजार हैं। तीसरे स्थान पर दलित वोटर आते हैं और उनकी संख्या करीब 70 हजार है। कायस्थ 26 हजार, सिंधी एवं पंजाबी 6 हजार, क्षत्रिय 6 हजार और अन्य पिछड़ा वर्ग 12,411 वोटर बड़ी भूमिका निभाते हैं। 2002 के बाद से मुस्लिम मतदाता सपा के साथ मजबूती के साथ खड़ा है। इसी के कारण तीन बार लगातार यहां से इरफान सोलंकी विधायक चुने गए। उससे पहले इरफान के पिता हाजी मुस्ताक सोलंकी विधायक निर्वाचित हुए।
1991 में पहली बार जीती बीजेपी
सीसामऊ विधानसभा सीट पर पहली बार 1985 में बीजेपी ने छवि लाल को टिकट दिया, पर उन्हें हार मिली। 1989 में पन्ना लाल तांबे को चुनाव के मैदान में उतारा और वह तीसरे नंबर पर रहे। बीजेपी ने 1991 में चुनाव में राकेश सोनकर को टिकट दिया और वह विधायक चुने गए। राकेश सोनकर ने 1993 और 1996 में लगातार दो और जीत हासिल कीं। इसके बाद लगातार दो बार 2002 और 2007 में कांग्रेस के संजीव दरियाबादी ने बीजेपी प्रत्याशियों को हराया। संजीव दरियाबादी के लिए यह सीट पारिवारिक कही जा सकती है, क्योंकि उनकी मां कमला दरियाबादी यहीं से 1985 में चुनाव जीती थीं। हालांकि इस सुरक्षित सीट को सामान्य घोषित करने के बाद यहां पर सपा का कब्जा हो गया।
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