कानपुर ऑनलाइन डेस्क। शहर से करीब 40 किमी की दूरी पर घाटमपुर कस्बा है। यहां के भीतरगांव ब्लॉक में प्राचीन सभ्यताओं के अलावा अजब-गजब मंदिर हैं, जहां पर हजारों भक्त आकर माथा टेकते हैं। यहीं पर चंदेल वंशीय राजाओें ने लाखौरी ईटों का शिव मंदिर बनवाया था तो इसी धरती पर मानसूनी पत्थरों से बना जगन्नाथ मंदिर है, जो बारिश होने की सटीक भविष्वाणी के लिए जाना जाता है। अकबर के दरबारी बीरबल की इसी धारा पर आस्था की खिचड़ी पकाई और शिव मंदिर का निर्माण करवाया था।
तीन देवालय कुछ अलग
घाटमपुर तहसील का भीतरगांव ब्लॉक स्थित कोरथा गांव हैं। यह गांव अपने आगोश में प्राचीन धरोहर और इतिहास भी सहेजे है। यहां पर तीन देवालय हैं। पहला मंदिर 0.75 मीटर ऊंची जगती पर निर्मित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित होने की बात निर्माण शैली से पता चलती है। इसमें उच्चकोटि की पच्चीकारी, उभारदार अलंकृत पट्टिकाएं आकर्षण बिखेरती हैं। वर्गाकार गर्भगृह का दृश्य मन मोह लेता है। दूसरा देवालय भू-विन्यास में पंचायतन शैली का है। इसका केवल ध्वंसावशेष ही अब केवल बचा है। तीसरा देवालय बाहर से गोलाकार व अंदर से वर्गाकार है। यहां उत्खनन में मिट्टी की बनी एक स्त्री प्रतिमा व पाषाण प्रतिमा के कुछ टुकड़े भी मिले थे। भू-विन्यास में बाहर से लगभग 11 मीटर का वर्गाकार यह मंदिर भग्नावस्था में मिला था।
मिट्टी के पट्टों की कई श्रृंखलाएं
मंदिर के निचले भाग में सादी लेकिन उभारयुक्त पच्चीकारी है। इसके ऊपर पकी मिट्टी के पट्टों की कई श्रृंखलाएं हैं। ये अर्ध स्तंभों से विभक्त हैं। इन अर्ध स्तंभों के मध्य में अनके मिट्टी की मूर्तियां अलग ही आकर्षण बिखेरती हैं। ये अर्ध स्तंभ अत्यंत अलंकृत छजली से युक्त है, जो मंदिर के चारों ओर दिखाई पड़ती है। मंदिर के पास ही ईंटों के एक अन्य निर्माण के अवशेष दिखते हैं। इसमें बाहर से सोलह पहल हैं व इसके मध्य में 3.4 मीअर व्यास का गर्भगृह भी निर्मित है। देवायल की देखभाल पुरातत्व विभाग करता है। यहां पर देश-विदेश से लोग आते हैं और मंदिर को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
सातवीं सदी का मंदिर बना आकर्षण का केंद्र
भीतरगांव में सातवीं सदी में बनवाया गया गुप्तकालीन मंदिर इतिहास में दर्ज है। ईंटों से निर्मित इस मंदिर की खोज का श्रेय अंग्रेज पर्यटक कानिंघम को दिया जाता है। मंदिर के गर्भग्रह में कोई मूर्ति नहीं है। जबकि, ईंटों से निर्मित दीवारों पर पशु-पक्षियों और मनुष्यों की मैथुनरत प्रतिमाएं (खजुराहो) की तर्ज पर खंडित अवस्था में हैं। मंदिर में बने फलकों की कलाकृति दर्शनीय है। इस मंदिर के दीदार को लोग दूर-दूर से आते हैं। रखरखाव ठीक से नहीं हो पाने से मंदिर की हालत खस्ता हो गई है।
मानसून की मंदिर करता है भविष्यवाणी
घाटमपुर से आठ किमी की दूरी पर स्थित बेंहटा-बुजुर्ग गांव हैं। यहां पर भगवान जगन्नाथ जी का भव्य और प्राचीन मंदिर है। पुरी (उड़ीसा) की तर्ज पर निर्मित मंदिर के मुख्य गुबंद की छत पर लगे मानसूनी पत्थर की विशेषता है कि बारिश के दिनों में मानसून सक्रिय होने से एक सप्ताह पहले ही पत्थर से पानी की बूंदें टपकनी शुरू हो जाती हैं। पत्थर से पानी की बूंदें गिरने का रहस्य वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाए हैं। गुबंद में जैसे ही पानी की बूंदे आनी शुरू हो जाती हैं, वैसे ही बारिश होने के संकेत मिले जाते हैं।
सूर्यवंशी राजाओं ने करवाया था मंदिर का निर्माण
9 वीं शताब्दी में निर्मित निबियाखेड़ा का भद्रेश्वर मंदिर का ऐतिहासिक, पौराणिक और धार्मिक महत्व है। इनकी आभा, इतिहास और पौराणिक कथाएं देश-विदेश के श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। यें सूर्यवंशी राजाओं का बनवाया प्राचीन शिव मंदिर है। ईंटों से निर्मित मंदिर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। मंदिर की देखभाल के लिए केयर टेकर भी तैनात है। केयरटेकर रामनरेश पाल ने कहा कि पर्यटन के लिहाज से ये मंदिर लोगों को अपनी ओर आर्कषित करता है। बताया, मंदिर में कईबार चोरी हुई, लेकिन मूर्ति को चोर कभी हाथ नहीं लगा पाए।
चूना-गारे से बना बैजनाथ धाम
मराठा शैली में निद्दमत कस्बा पतारा स्थित बैजनाथ धाम शिव मंदिर काफी प्राचीन है। इसका उल्लेख बुंदेलों के ग्रंथ आल्हा में भी मिलता है। चूना के गारे से बना मंदिर काफी प्राचीन और भव्य है। वहीं, गर्भगृह के भीतर स्थापित शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि यह इसी स्थान पर पाताल से निकला था। कानपुर-सागर राजमार्ग पर स्थित कसबा और ब्लाक मुख्यालय की बस्ती के भीतर बने बाबा बैजनाथ धाम पहुंचने के लिए ब्लाक मुख्यालय वाली रोड से होकर जाना पड़ता है। ग्रामीण सत्यदेव त्रिपाठी और रमेश गुप्ता ने बताया कि बाबा बैजनाथ की मूर्ति उनके अर्द्धनारीश्वर स्वरूप में है। जबकि, मूर्ति कितनी प्राचीन है इसका कोई प्रमाणिक उल्लेख नहीं है।
बीरबल ने करवाया था मंदिर का निर्माण
सागर राष्ट्रीय राजमार्ग पर सजेती से सिर्फ 500 मीटर दूरी पर स्थित बिहारेश्वर महादेव मंदिर अकबर के नवरत्न बीरबल द्वारा बनवाया गया था। ककई ईंटों से मुगल शैली में निद्दमत इस मंदिर की स्मृतियां महाकवि भूषण व छत्रपति शिवाजी से भी जुड़ी हैं। पुराने राजस्व अभिलेखों में इस मंदिर के नाम 84 बीघा भूमि व तालाब था। तलाब पूरी तरह से सूखे पड़े हैं। मंदिर के पुजारी रघुराज सिंह ने बताया कि बीरबल अक्सर यहां आते और महोदव की अराधना किया करते थे। कहते हैं, आज भी बीरबल की आहट यहां सुनाई पड़ती है।
यहीं पर गुरु द्रोणाचार्य ने बिताए कई बरस
गंगा नदी तट पर करीब चार हजार सालों से आदिकालीन आस्था के मुख्य केंद्र खेरेश्वर महादेव मंदिर का शिवलिंग स्वयंभू है।ऐसी मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ ब्रह्मांड भ्रमण के दौरान कुछ समय के लिए यहां रुके थे तभी यहां ईश्वरी कृपा से अनंतकाल में स्यंभू शिवलिंग की उत्पति हुई थी। स्थान के महत्व को देखते हुए महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य ने गंगा नदी के तट पर अपनी कुटिया बनाई और अपने शिष्यों कौरवों और पांडवो को शस्त्र शिक्षा दी। यहीं पर द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का भी जन्म हुआ। गुरु द्रोणाचार्य की कुटी के कई अवशेष अब भी दंडी आश्रम पर खुदाई के दौरान मिलते हैं।
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