Mukesh Chandrakar Murder: क्या था मुकेश की हत्या का राज? नक्सल प्र


पत्रकार मुकेश चंद्राकर: छत्तीसगढ़ के जिला बीजापुर से एक दिल दहलाने वाली खबर सामने आई है जहां एक जाने-माने पत्रकार, मुकेश चंद्राकर की हत्या की गई और उनका शव एक ठेकेदार के घर के सेप्टिक टैंक में मिला है। मुकेश चंद्राकर, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अपनी बहादुरी और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए जाने जाते थे, पिछले दो दिनों से लापता थे। आज शाम उनकी लाश बरामद होने की खबर ने सभी को स्तब्ध कर दिया है।

Mukesh Chandrakar ने हाल ही में एक विवादास्पद सड़क निर्माण परियोजना पर रिपोर्ट की थी, जिसकी कीमत 120 करोड़ रुपए थी। उन्होंने सड़क की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए एक स्टोरी प्रकाशित की थी, जिसके बाद इस परियोजना से जुड़े ठेकेदार सुरेश चंद्राकर के खिलाफ जांच शुरू हो गई थी। इस रिपोर्टिंग के बाद, मुकेश को ठेकेदार के भाई, नरेश चंद्राकर ने मिलने के लिए बुलाया था।

वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि Mukesh Chandrakar का शव ठेकेदार के घर के सेप्टिक टैंक से बरामद किया गया है, जहां उनकी पीठ पर घाव के निशान देखे गए हैं। यह स्पष्ट है कि उनकी हत्या की गई और फिर उनका शव कंक्रीट की एक परत से ढक दिया गया था ताकि सबूत छिपाए जा सकें। पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए एसआईटी का गठन किया है और इस घटना की जांच के लिए फॉरेंसिक टीम को भी बुलाया गया है।

पत्रकार संघों और स्थानीय लोगों ने इस घटना की निंदा की है, जिसमें एक बहादुर पत्रकार Mukesh Chandrakar की जीवन की कीमत चुकानी पड़ी है। मुकेश चंद्राकर को उनकी साहसिक पत्रकारिता के लिए जाना जाता था; वे उन चंद पत्रकारों में से एक थे जो नक्सलियों के क्षेत्र में भी घुसकर रिपोर्टिंग करते थे। दो साल पहले, उन्होंने बस्तर के जंगलों में जाकर सीआरपीएफ के जवानों को नक्सलियों के चंगुल से मुक्त करवाया था, जिसने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई थी।

इस हत्या ने पत्रकारों की सुरक्षा के मुद्दे को एक बार फिर से उठा दिया है। पत्रकारों के संगठनों ने मुकेश के परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त की है और मांग की है कि जल्द से जल्द हत्यारों को पकड़ा जाए और उन्हें कड़ी सजा दी जाए। पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की सुरक्षा को लेकर बहस शुरू हो गई है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां वे अपनी जान जोखिम में डालकर सच्चाई सामने लाते हैं।

बीजापुर में पत्रकारों का एक समूह आईजी सुंदरराज पी से मिला है और उन्होंने इस मामले को तत्काल निपटाने की मांग की है। स्थानीय पत्रकारों ने मुकेश की असमय मृत्यु को एक बड़ा नुकसान बताया है और उनकी याद में विभिन्न आयोजनों की घोषणा की है। पुलिस ने आश्वासन दिया है कि इस मामले की तह तक जाकर जांच की जाएगी और दोषियों को कानून के कठघरे में लाया जाएगा।

इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि सच्चाई को सामने लाने की कीमत क्या हो सकती है, और क्या पत्रकारों को अपने काम के लिए अपनी जान भी देनी पड़ेगी?

पत्रकार मुकेश चंद्राकर: छत्तीसगढ़ के जिला बीजापुर से एक दिल दहलाने वाली खबर सामने आई है जहां एक जाने-माने पत्रकार, मुकेश चंद्राकर की हत्या की गई और उनका शव एक ठेकेदार के घर के सेप्टिक टैंक में मिला है। मुकेश चंद्राकर, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अपनी बहादुरी और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए जाने जाते थे, पिछले दो दिनों से लापता थे। आज शाम उनकी लाश बरामद होने की खबर ने सभी को स्तब्ध कर दिया है।

Mukesh Chandrakar ने हाल ही में एक विवादास्पद सड़क निर्माण परियोजना पर रिपोर्ट की थी, जिसकी कीमत 120 करोड़ रुपए थी। उन्होंने सड़क की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए एक स्टोरी प्रकाशित की थी, जिसके बाद इस परियोजना से जुड़े ठेकेदार सुरेश चंद्राकर के खिलाफ जांच शुरू हो गई थी। इस रिपोर्टिंग के बाद, मुकेश को ठेकेदार के भाई, नरेश चंद्राकर ने मिलने के लिए बुलाया था।

वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि Mukesh Chandrakar का शव ठेकेदार के घर के सेप्टिक टैंक से बरामद किया गया है, जहां उनकी पीठ पर घाव के निशान देखे गए हैं। यह स्पष्ट है कि उनकी हत्या की गई और फिर उनका शव कंक्रीट की एक परत से ढक दिया गया था ताकि सबूत छिपाए जा सकें। पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए एसआईटी का गठन किया है और इस घटना की जांच के लिए फॉरेंसिक टीम को भी बुलाया गया है।

पत्रकार संघों और स्थानीय लोगों ने इस घटना की निंदा की है, जिसमें एक बहादुर पत्रकार Mukesh Chandrakar की जीवन की कीमत चुकानी पड़ी है। मुकेश चंद्राकर को उनकी साहसिक पत्रकारिता के लिए जाना जाता था; वे उन चंद पत्रकारों में से एक थे जो नक्सलियों के क्षेत्र में भी घुसकर रिपोर्टिंग करते थे। दो साल पहले, उन्होंने बस्तर के जंगलों में जाकर सीआरपीएफ के जवानों को नक्सलियों के चंगुल से मुक्त करवाया था, जिसने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई थी।

इस हत्या ने पत्रकारों की सुरक्षा के मुद्दे को एक बार फिर से उठा दिया है। पत्रकारों के संगठनों ने मुकेश के परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त की है और मांग की है कि जल्द से जल्द हत्यारों को पकड़ा जाए और उन्हें कड़ी सजा दी जाए। पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की सुरक्षा को लेकर बहस शुरू हो गई है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां वे अपनी जान जोखिम में डालकर सच्चाई सामने लाते हैं।

बीजापुर में पत्रकारों का एक समूह आईजी सुंदरराज पी से मिला है और उन्होंने इस मामले को तत्काल निपटाने की मांग की है। स्थानीय पत्रकारों ने मुकेश की असमय मृत्यु को एक बड़ा नुकसान बताया है और उनकी याद में विभिन्न आयोजनों की घोषणा की है। पुलिस ने आश्वासन दिया है कि इस मामले की तह तक जाकर जांच की जाएगी और दोषियों को कानून के कठघरे में लाया जाएगा।

इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि सच्चाई को सामने लाने की कीमत क्या हो सकती है, और क्या पत्रकारों को अपने काम के लिए अपनी जान भी देनी पड़ेगी?

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