कानपुर। चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है और देशभर में सुबह से लेकर देरशाम तक देवी मंदिरों में भक्तों की कतार लगी रहती हैं। गंगा के किनारे बसे कानपुर शहर में भी 6 देवियों प्रसिद्ध सिद्धपीठ हैं, जिनकी अद्भुत गाथा है। नवरात्रि पर देवालयों में आस्था का ज्वार उमड़ रहा है। भक्त मातारानी के दर पर आकर मत्था टेकते हैं और मन्नत मांगते हैं।
वैभव लक्ष्मी मंदिर में बंटता है खजाना
कानपुर में वैभव लक्ष्मी का प्रचीन मंदिर है। नवरात्रि पर मातारानी के दर पर भक्तों का जनसैलाब उमड़ता है। नवरात्रि के 9 दिनों में पड़ने वाले शुक्रवार को ही यहां प्रसाद बांटा जाता है। प्रसाद के तौर पर भक्तों को खजाना दिया जाता है। मंदिर में सुबह 9 बजे से बंटने वाले खजाने को लेने के लिए सुबह 6 बजे महिलाओं की लाइन लगनी शुरू हो जाती है। कानपुर ही नहीं बल्कि आसपास के जनपदों के भक्त खजाना लेने के लिए आते हैं।
नवरात्रि में बंटता है खजाना
मंदिर के प्रबंधक अनूप कपूर बताते हैं कि 1889 में इस मंदिर का निर्माण इनके पूर्वजो ने किया था। साल 2000 में चैत नवरात्रि के पहले मंदिर के अंदर मां लक्ष्मी की मूर्ति को स्थापित किया गया। मूर्ति स्थापना के बाद माता लक्ष्मी उनकी पत्नी के सपने में आई और कहा कि चढ़ावे में जो सिक्के चढ़े उसे लाल कपडे में लपेट कर लोगों को प्रसाद के रूप में बांट दो, तभी से साल में 2 बार आने वाले नवरात्रि में खजाना बांटा जाता है।
5 लाख भक्तों का बांटा जाता है खजाना
मंदिर के प्रबंधक बताते हैं कि भक्त मंदिर में जो 5 रुपए, 1 रुपए या 2 रुपए के सिक्के चढ़ाते हैं, वहीं नवरात्रि में खजाने के रूप में बांटा जाता है। वर्तमान में करीब 5 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं को खजाना बांटा जाता है। इसकी तैयारी करीब 2 महीने पहले से ही शुरू कर दी जाती है। अनूप कुमार के मुताबिक, इस खजाने को तिजोरी या बक्से में रखने से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है और घर में बरक्कत होती है।
मां जंगली देवी की गाथा
कानपुर के दक्षिण इलाके में मां जंगली देवी का ऐतिहासिक मंदिर है। मां जंगली देवी मंदिर के पीछे की कहानी भी पौराणिक है। किदवई नगर के जंगलों में बसी तो नाम पड़ गया मां जंगली देवी। कानपुर ही नहीं दूर-दूर से भक्त इस मंदिर में नवरात्रि के दिनों में अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए दर्शन करने आते हैं। मंदिर में आने वाले मां के भक्तों की मानें तो देवी के मंदिर के पास जो कोई एक ईंट रखकर वही ईंट अपने मकान के निर्माण में लगा देता है तो उसका मकान बहुत ही जल्द बंगले में बदल जाता है।
मातारानी का चमत्कार
मंदिर के पुजारी मां जंगली देवी के एक चमत्कार के बारे में बताते हैं। पुजारी का दावा है कि नवरात्रि के दिनों में देवी की मूर्ति का रंग दिन में तीन बार बदलता है। पुजारी बताते हैं कि सच्चे मन से अगर मां के चेहरे को निहार कर उनसे अपने मन की बात कही जाए तो मां के चेहरे के हाव-भाव और मूर्ति का गुलाबी रंग का हो जाना यह दर्शाता है कि आपकी मनोकामना पूर्ण होने वाली है। मंदिर में सन 1980 से एक अखंड ज्योति लगातार निरंतर जलती आ रही है। इस ज्योति को जलाने में योगदान, सहयोग देने वाले की भी मां मनोकामना पूर्ण कर देती हैं।
माब
कानपुर के बिरहाना रोड में मां तपेश्वरी देवी का मंदिर आस्था का केंद्र है, मान्यता है कि यहां पर अखंड ज्योति प्रज्जवलित करने से मनोकामना पूर्ण होती है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम द्वारा त्यागे जाने पर माता सीता ब्रह्मावर्त (बिठूर) में महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में आई थी। उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तप किया, जिससे तपेश्वरी माता का प्राकट्य हुआ था। इसी स्थान पर माता सीता अपने पुत्रों लव-कुश का मुंडन संस्कार कराया था। इसी स्थान पर आज सिद्धपीठ तपेश्वरी माता का दरबार है। यहां दूर-दराज से लोग बच्चों का मुंडन कराने आते हैं और अखंड ज्योति भी जलाते हैं।
मां बारा देवी का दरबार
कानपुर शहर के दक्षिण क्षेत्र मां बारा देवी का दरबार है, इस मंदिर का इतिहास कितना पुराना है यह कोई नहीं जानता है। ऐसा कहा जाता है कि कुछ समय पहले एएसआइ की टीम ने मंदिर का सर्वेक्षण किया था तो यहां की मूर्तियों को लगभग 15 से 17 सौ वर्ष पुराना बताया था। पूरे साल मंदिर में भक्तों का आना होता है लेकिन नवरात्रि पर भीड़ उमड़ती है। मंदिर से जुड़ी कथा प्रचलित है कि पिता से नाराज होकर घर से एक साथ 12 बहनें चली गईं और फिर पत्थर की हो गईं। कन्याओं की ये प्रतिमाएं बारादेवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुईं। भक्त मनोकामना पूर्ण होने के लिए चुनरी बांधते हैं और नवरात्रि पर जवारे के जुलूस में सांग लगाकर पहुंचते हैं।
माता सीता से जुड़ा है मंदिर का इतिहास
कल्याणपुर स्थित मां आसा देवी का मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। तपेश्वरी मंदिर की तरह यहां का भी इतिहास माता सीता से जुड़ा है। किवदंती है कि माता सीता ने शिला पर देवी मां की आकृति बनाकर पूजन किया था और उन्हें भगवान श्रीराम के दर्शन मिलने पर मनो कामना पूरी हुई। तब से देवी मां सबकी आस पूरी कर रही हैं और मंदिर का नाम आसा देवी मंदिर हो गया। मंदिर में प्राचीन शैली की अन्य मूर्तियां भी हैं।
जलती है अखंड ज्योति
कानपुर शहर के मध्य देवनगर में मां चण्डिका देवी मंदिर स्थापित है, जो 200 वर्ष से भी प्राचीन है। यहां कमल के पत्ते पर अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित है। साल में शारदीय और चैत्र नवरात्र पर अखंड ज्योति के पात्र में घृत डालते हैं। मंदिर के गर्भ गृह में दर्पण लगा है, जिससे दर्शन करने पर मां का शीश हल्का झुका दिखता है और मान्यता है कि अष्टमी पूजन के समय कुछ समय के लिए शीश सीधा दिखता है। भक्त इसे मां का चमत्कार मानते हैं। राजस्थानी शिल्पकला वाले मंदिर में भैरव महाराज की मूर्ति भी है और नवरात्रि पर 108 नारियल की भेंट अर्पित किया जाता है।